माता भुवनेश्वरी

सम्मानित तथा आदरणीय हमारे प्रिय भक्तजन आज हम श्रीवृद्धि ज्योतिष द्वारा एक बार पुनः आपके समकक्ष दशमहाविद्याओं में से चैथी (चतुर्थ) महाविद्या भगवती भुवनेश्वरी की कथा को लेकर आए है। आशा करते है कि आप भक्तियुक्त चिन्त से माता की कथा का श्रवण करेंगे।

आसाम गुवाहाटी की नालांचल पहाड़ियों पर विराजमान माता भगवती भुवनेश्वरी को आदिशक्ति और मूल प्रकृति भी कहा गया है। भुवनेश्वरी ही शताक्षी और शाकम्भरी नाम से प्रसिद्ध हुई। पुत्र प्राप्ति के लिए लोग इनकी आराधना करते हैं।

आदि शक्ति भुवनेश्वरी माॅ के प्रादुर्भाव से प्रचलित पौराणिक कथाओं के अनुसार एक बार मधु कैटभ नामक महादैत्यों ने पूरी पृथ्वी पर हाहाकार मचा रखा था, तब सभी देव मिलकर भगवान विष्णु के पास गये और उनको अपनी निंद्रा का त्याग करने के लिए प्रार्थना करने लगे ताकि वे जल्दी से उठकर मधु कैटभ का वध कर उनकी रक्षा करें। भगवान विष्णु ने निद्रा का त्याग किया तथा जाग्रत हुए और उन्होंने पाॅच हजार वर्षों तक मधु कैटभ नामक महाअसुरों से युद्ध किया। बहुत अधिक समय तक युद्ध करते हुए भगवान विष्णु थक गए और वह अकेले ही युद्ध कर रहे थे। अंत में उन्होंने अपने अन्तःकरण की शक्ति योग माया आधा शक्ति से सहायता के लिए प्रार्थना की तब देवी ने उन्हें आश्वस्त किया कि वे उन दोनों दैत्यों को अपनी माया से मोहित कर देगी। योगमाया आधा शक्ति की माया में मोहित होकर दैत्य भाई भगवान विष्णु से कहने लगे कि हमारा वध ऐसे स्थान पर करो जहाॅ न ही जल हो और न ही स्थल।

भगवान विष्णु ने दैत्यों को अपनी जंघा पर रखकर अपने चक्र से उनके मस्तक को देह से अलग कर दिया। इस प्रकार उन्हांेने मधु कैटभ का वध किया, परन्तु वे केवल निमिन्त मादा ही थे। उसके बाद ब्रह्मा, विष्णु, शंकर ने देवी आदि शक्ति योगनिद्रा महामाया की स्तुति की। जिससे प्रसन्न होकर आदि शक्ति ने ब्रह्मा जी को सृजन विष्णु जी को पालन तथा शंकर जी को संहार के देवता के रूप में चुना। ब्रह्मा जी ने देवी शक्ति से प्रश्न किया कि अभि चारों ओर जल ही जल फैला हुआ है। पंच तत्व, गुण, तन मात्राएंे और इन्द्रियां कुछ भी व्याप्त नहीं है। तथापि तीनों देव शक्ति हीन है। देवी ने मुस्कुराते हुए उस स्थान पर एक सुन्दर विमान को प्रस्तुत किया और तीनों देवताओं को विमान पर बैठे अद्भुत चमत्कार देखने का आग्रह किया गया। तीनों देवों के विमान पर आसीन होने के पश्चात् वह देवी-विमान आकाश में उड़ने लगा और उड़कर ऐसे स्थान पर पहुॅचा। जहाॅ जल नहीं था। वह विमान वायु की गति से चलने लगा तथा एक सागर के तट पर पहुॅचा, वहाॅ का दृश्य अत्यंत मनोहर था और उनके प्रकार के पुष्प् वाटिकाओं से सृसज्जित था तभी वहाॅ देवों ने एक पलंग पर एक दिव्यांगना को बैठे हुए देखा। देवी ने रक्त पुष्पों की माला और रक्ताम्बर धारण कर रखी थी। वर, पाश, अंकुश और अभय मुद्रा धारण किए हुए देवी भुवनेश्वरी, त्रिदेवों को सनमुख दृष्टि-गोचर हुई जो सहस्त्रों उदित सूर्य के प्रकाश के समान कान्तिमयी थी।

ये सब देखने के बाद भगवान विष्णु ने अपने अनुभव से शंकर तथा ब्रह्मा जी से कहा कि ये साक्षात देवी जगदम्बा महामाया है और इसके साथ ही यह देवी हम तीनों और सम्पूर्ण चराचरा जगत की कारण किया है। तीनों देव भगवती भुवनेश्वरी की स्तुति करने के निमित्त उनके चरणों के निकट गए। तीनों देवी ने देवी के चरण-कमल के नख में सम्पूर्ण ब्रह्माण की जनवी है।

वह जगदम्बा त्रिगुणमयी है तथा मनोवा´िदत उत्तम फल दामिनी है। माॅ भगवती भुवनेश्वरी के अन्यत्र सिद्ध पीठ श्रीलंका, गुजरात, भारत के विभिन्न क्षेत्रों में उपस्थित हैं।

माँ भुवनेश्वरी 2100 पाठ

माता भुवनेश्वरी की पूजा करने से भक्तों के पुत्र प्राप्ति की कामना पूरी होती हैं। जिन भक्तों को संतान प्राप्ति की इच्छा हैं वे मुख्य रूप से मातारानी के इस रूप की पूजा करते हैं। भुवनेश्वरी देवी की पूजा करने से भक्तों को आत्मिक ज्ञान व चित्त शांति का अनुभव होता हैं। माँ भुवनेश्वरी हमे जीवन के पंच तत्वों का मूल समझाती हैं तथा ब्रह्मांड में हमारा क्या महत्व हैं, इसके बारे में जागृत करती हैं।

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माँ भुवनेश्वरी 5100 पाठ

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माँ भुवनेश्वरी सवा लाख जाप

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माँ भुवनेश्वरी सम्पूर्ण कवच

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सर्व कार्य सिद्धि हेतु हवन

राजस यज्ञ सात्विक होता है , जिसे समस्त लोग कर सकते हैं , तामस यज्ञ सात्विक नहीं होता है तथा उसमें ड़लने वाली आहुति भी सात्विक नहीं होती हैं , तथा तानस यज्ञ जिसे तांत्रिक क्रिया से किया जाता है , इस यज्ञ में भी सात्विक आहुति नहीं ड़लती ,

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