Benefits of recitation:
Whoever listens to the story of Vishnu Purana by meditating at the feet of Lord Shri
Hari Vishnu, all his sins are destroyed. And after experiencing death in this world,
he experiences divine pleasures even in heaven. Thereafter in the end the seeker
receives the serene position of Lord Vishnu. Vishnu Purana can be read by people of
all varnas. And you can hear the story of it. This Purana is like Veda. By reading
Vishnu Purana, man attains age, work, wealth, religion, knowledge. Therefore every
person in the world must read this confidential Purana once in their life or listen
to its story.
पौराणिक मान्यता:
विष्णुपुराण अट्ठारह पुराणों में अत्यन्त महत्त्वपूर्ण तथा प्राचीन है। यह श्री पराशर
ऋषि द्वारा प्रणीत है। इसके प्रतिपाद्य भगवान विष्णु हैं, जो सृष्टि के आदिकारण, नित्य,
अक्षय, अव्यय तथा एकरस हैं। इस पुराण में आकाश आदि भूतों का परिमाण, समुद्र, सूर्य आदि
का परिमाण, पर्वत, देवतादि की उत्पत्ति, मन्वन्तर, कल्प-विभाग, सम्पूर्ण धर्म एवं
देवर्षि तथा राजर्षियों के चरित्र का विशद वर्णन है। भगवान विष्णु प्रधान होने के बाद
भी यह पुराण विष्णु और शिव के अभिन्नता का प्रतिपादक है। विष्णु पुराण में मुख्य रूप से
श्रीकृष्ण चरित्र का वर्णन है, यद्यपि संक्षेप में राम कथा का उल्लेख भी प्राप्त होता
है।
पुराण में भगवान श्री हरि विष्णु के चरित्र का विस्तृत वर्णन है। इस पुराण के रचयिता
महर्षि वेदव्यास जी के पिता ऋषि पराशर जी थे। विष्णु पुराण में वर्णन आता है, जब महर्षि
पराशर जी के पिता शक्ति को राक्षसों ने मार डाला… तब ऋषि पराशर ने राक्षसों के विनाश के
लिए ‘रक्षोघ्न यज्ञ’यज्ञ प्रारंभ किया। ऋषि पाराशर के इस यज्ञ की
शक्ति इतनी प्रवल थी, की हजारों राक्षस उनके यज्ञ कुंड में गिर गिर कर स्वाहा होने लगे।
इसके बाद राक्षसों के पिता पुलस्त्य ऋषि और ऋषि पराशर के पितामह वशिष्ट जी ने महर्षि
पराशर को समझाया, और उनसे वह यज्ञ बंद करवाया। इसी बात से पुलस्त्य ऋषि बहुत प्रसन्न
हुए। और उन्होंने ऋषि पराशर जी को विष्णु पुराण के रचयिता होने का आशीर्वाद दिया।
दोस्तो पुलस्त्य ऋषि के आशीर्वाद के फलस्वरुप पराशर जी को विष्णु पुराण का स्मरण हो गया।
और तब जाकर पराशर मुनि ने मैत्रेय जी को संपूर्ण विष्णु पुराण सुनाया। ऋषि पराशर जी और
मैत्रेय जी का वही संवाद विष्णु पुराण में वर्णित है।
विष्णुपुराण में 6 अंश है, तथा इस पुराण में 23000 श्लोक हैं। इस ग्रंथ में भगवान
विष्णु, बालक ध्रुव तथा भगवान श्री कृष्ण अवतार की कथाएं संकलित की गई हैं। इसके
अतिरिक्त इस पुराण में राजा पृथु की कथा भी वर्णित की गई है। जिस कारण हमारी इस धरती का
नाम पृथ्वी पड़ा था। सूर्यवंशी तथा चंद्रवंशी राजाओं का इतिहास भी विष्णु पुराण में
वर्णित है। विष्णु पुराण वास्तव में एक ऐतिहासिक ग्रंथ है।
Mythological belief:
Vishnupurana is the most important and ancient among the eighteen Puranas. It is
authored by Shri Parashar Rishi. It is propounded by Lord Vishnu, who is the
primordial, eternal, inexhaustible, unseen and monogamous of the universe. In this
Purana, there is a detailed description of the magnitude of the ghosts like sky, the
magnitude of the sea, the sun, the mountain, the origin of the deity, the
manvantara, the kalpa-vibhag, the entire religion and the character of the devarshi
and rajaris. Even after Lord Vishnu being the head, this Purana is an exponent of
the integration of Vishnu and Shiva. The Vishnu Purana mainly describes the Sri
Krishna character, though a brief mention of the Ram Katha is also found.
The Purana gives a detailed description of the character of Lord Shri Hari Vishnu.
The author of this Purana was Rishi Parashar ji, the father of Maharishi Ved Vyas
ji. The description comes in Vishnu Purana, when Shakti Parashar ji’s father Shakti
was killed by demons… then sage Parashar started ‘Rakshoghan Yajna’ Yajna for the
destruction of demons. The power of this yagya of sage Parashar was so primal, that
thousands of demons fell into their yagna kunda and began to die. After this,
Pulastya Rishi, the father of demons, and Vashishtha, father of Rishi Parashar,
explained to Maharishi Parashar, and got him to stop the yagna. Pulastya Rishi was
very happy with this. And he blessed the sage Parasharji to be the author of Vishnu
Purana.
Friends, as a result of the blessings of sage Pulastya, Parasharji remembered Vishnu
Purana. And then Parashar Muni narrated the entire Vishnu Purana to Maitreya ji. The
same dialogue of sages Parasharji and Maitreya Ji is described in the Vishnu Purana.
Vishnupurana has 6 degrees, and this Purana has 23000 verses. In this book, the
stories of Lord Vishnu, the child Dhruva and Lord Shri Krishna avatar have been
compiled. Apart from this, the story of King Prithu is also described in this
Purana. Because of which our earth was named Earth. The history of Suryavanshi and
Chandravanshi kings is also mentioned in the Vishnu Purana. The Vishnu Purana is
indeed a historical book.
पाठ के लाभ:
श्रीमद्भागवत भक्तिरस तथा अध्यात्मज्ञान का समन्वय उपस्थित करता है। भागवत निगमकल्पतरु
का स्वयंफल माना जाता है जिसे नैष्ठिक ब्रह्मचारी तथा ब्रह्मज्ञानी महर्षि शुक ने अपनी
मधुर वाणी से संयुक्त कर अमृतमय बना डाला है। स्वयं भागवत में कहा गया है
Benefits of recitation:
Shrimad Bhagavat coordinates Bhaktiras and spiritual science. The Bhagavata is
considered to be the self-sufficiency of Nigamakalpataru, which has been made
amritamay by the natural brahmachari and the great scientist Maharishi Shuk,
combined with his sweet voice It is said in the Bhagwat itself
पौराणिक मान्यता:
एक बार भगवत्-अनुरागी तथा पुण्यात्मा महर्षियों ने श्री वेदव्यास के परम शिष्य सूतजी से
प्रार्थना की-हे ज्ञानसागर ! आपके श्रीमुख से विष्णु भगवान और शंकर के दैवी चरित्र तथा
अद्भुत लीलाएं सुनकर हम बहुत सुखी हुए। ईश्वर में आस्था बढ़ी और ज्ञान प्राप्त किया। अब
कृपा कर मानव जाति को समस्त सुखों को उपलब्ध कराने वाले, आत्मिक शक्ति देने वाले तथा
भोग और मोक्ष प्रदान कराने वाले पवित्रतम पुराण आख्यान सुनाकर अनुगृहीत कीजिए।
ज्ञानेच्छु और विनम्र महात्माओं की निष्कपट अभिलाषा जानकर महामुनि सूतजी ने अनुग्रह
स्वीकार किया। उन्होंने कहा-जन कल्याण की लालसा से आपने बड़ी सुंदर इच्छा प्रकट की। मैं
आप लोगों को उसे सुनाता हूँ। यह सच है कि श्री मद् देवी भागवत् पुराण सभी शास्त्रों तथा
धार्मिक ग्रंथों में महान है। इसके सामने बड़े-बड़े तीर्थ और व्रत नगण्य हैं। इस पुराण
के सुनने से पाप सूखे वन की भांति जलकर नष्ट हो जाते हैं, जिससे मनुष्य को शोक, क्लेश,
दु:ख आदि नहीं भोगने पड़ते। जिस प्रकार सूर्य के प्रकाश के सामने अंधकार छंट जाता है,
उसी प्रकार भागवत् पुराण के श्रवण से मनुष्य के सभी कष्ट, व्याधियां और संकोच समाप्त हो
जाते हैं। महात्माओं ने सूतजी से भागवत् पुराण के संबंध में ये जिज्ञासाएं रखीं:
देवी भागवत पुराण के अनुसार आगत मुनियों को यह कथा सुनाते हुए सूतजी
बोले-श्रद्वालु ऋषियों ! कथा श्रवण के लिए श्रद्धालु जनों को शुभ मुहूर्त निकलवाने के
लिए किसी ज्योतिर्विद् से सलाह लेनी चाहिए या फिर नवरात्रों में ही यह कथा-श्रवण
उपयुक्त है। इस अनुष्ठान की सूचना विवाह के समान ही अपने सभी बंधु-बांधवों,
सगे-संबंधियों, परिचितों, ब्राह्मण, क्षत्रियों, वैश्यों, शूद्रों एवं स्त्रियों को भी
आमंत्रित करना चाहिए। जो जितना अधिक समय श्रवण में दे सके, उतना अवश्य दे। सभी आगंतुकों
का स्वागत सत्कार आयोजन का धर्म है। कथा-स्थल को गोबर से लीपकर एक मंडप और उसके ऊपर एक
गुंबद के आकार का चंदोवा लटकाकर इसके ऊपर देवी चित्र युक्त ध्वजा फहरा देनी चाहिए। कथा
सुनाने के लिए सदाचारी, कर्मकांडी, निर्लोभी कुशल उपदेशक को ही नियुक्त करना चाहिए।
प्रात:काल स्नान आदि से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र धारण कर कलश की स्थापना करनी चाहिए।
गणेश, नवग्रह, योगिनी, मातृका, क्षेत्रपाल, बटुक, तुलसी विष्णु तथा शंकर आदि की पूजा
करके भगवती दुर्गा की आराधना करनी चाहिए। देवी की षोडशोपचार पूजा-अर्चना करके देवी
भागवत ग्रंथ की पूजा करनी चाहिए तथा देवी यज्ञ निर्विघ्न समाप्त होने की अभ्यर्थना करनी
चाहिए। प्रदक्षिणा और नमस्कार करते हुए देवी की स्तुति प्रारंभ करनी चाहिए। तत्पश्चात्
ध्यानावस्थित होकर देवी कथा श्रवण करनी चाहिए। कथा के श्रवणकाल में श्रोता अथवा वक्ता
को क्षौर कर्म नहीं करवाना चाहिए। भूमि पर शयन ब्रह्मचर्य का पालन सादा भोजन संयम शुद्ध
आचरण सत्य भाषण, तथा अहिंसा का व्रत लेना चाहिए। तामस पदार्थ यथा-प्याज, लहसुन, मांस,
मदिरा आदि का भक्षण भी वर्जित है। स्त्री-प्रसंग का बलपूर्वक त्याग करना चाहिए। नवाह्न
यज्ञ की समाप्ति पर नवें दिन अनुष्ठान का उद्यापन करना चाहिए। उस दिन वक्ता तथा भागवत
पुराण दोनों की पूजा करनी चाहिए। ब्राह्मण तथा कुमारिकाओं को भोजन एवं दक्षिणा देकर
तृप्त करना चाहिए। गायत्री मंत्र से होम करके स्वर्ण मंजूषा पर अधिष्ठित भागवत पुराण
वक्ता ब्राह्मण को दान में देते हुए दक्षिणादि से संतुष्ट करते हुए उसे विदा करना
चाहिए। पूर्वोक्त विधि-विधान से निष्काम भाव से पारायण करने वाला श्रोता श्रद्धालु
मोक्षपद को और सकाम भाव से पारायण करने वाला अपने अभीष्ट को प्राप्त करता है। कथा-श्रवण
के समय किसी भी प्रकार का वार्तालाप, ध्यानभग्नता, आसन बदलने, ऊंघने या अश्रद्धा से
बड़ी भारी हानि हो सकती है अत: ऐसा नहीं करना चाहिए। सूतजी महाराज ने कहा-अठारह पुराणों
में देवी भागवत् पुराण उसी प्रकार सर्वोत्तम है, जिस प्रकार नदियों में गंगा, देवों में
शंकर, काव्यों में रामायण, प्रकाश स्रोतों में सूर्य, शीतलता और आह्लाद में चंद्रमा,
क्षमाशीलों में पृथ्वी, गंभीरता में सागर और मंत्रों में गायत्री आदि श्रेष्ठ हैं। यह
पुराण श्रवण सब प्रकार के कष्टों का निवारण करके आत्मकल्याण करता है। अत: इसका पारायण
सभी के लिए श्रेष्ठ एवं वरेण्य है।
श्रीमद्भागवत भारतीय वाङ्मय का मुकुटमणि है। भगवान शुकदेव द्वारा महाराज परीक्षित को
सुनाया गया भक्तिमार्ग तो मानो सोपान ही है। इसके प्रत्येक श्लोक में श्रीकृष्ण-प्रेम
की सुगन्धि है। इसमें साधन-ज्ञान, सिद्धज्ञान, साधन-भक्ति, सिद्धा-भक्ति,
मर्यादा-मार्ग, अनुग्रह-मार्ग, द्वैत, अद्वैत समन्वय के साथ प्रेरणादायी विविध
उपाख्यानों का अद्भुत संग्रह है।
अष्टादश पुराणों में भागवत नितांत महत्वपूर्ण तथा प्रख्यात पुराण है। पुराणों की गणना
में भागवत अष्टम पुराण के रूप में परिगृहीत किया जाता है (भागवत 12.7.23)। भागवत पुराण
में महर्षि सूत जी उनके समक्ष प्रस्तुत साधुओं को एक कथा सुनाते हैं। साधु लोग उनसे
विष्णु के विभिन्न अवतारों के बारे में प्रश्न पूछते हैं। सूत जी कहते हैं कि यह कथा
उन्होने एक दूसरे ऋषि शुकदेव से सुनी थी। इसमें कुल बारह स्कन्ध हैं। प्रथम स्कन्ध में
सभी अवतारों का सारांश रूप में वर्णन किया गया है।
श्रीमद्भाग्वतम् सर्व वेदान्त का सार है। उस रसामृत के पान से जो तृप्त हो गया है, उसे
किसी अन्य जगह पर कोई रति नहीं हो सकती। (अर्थात उसे किसी अन्य वस्तु में आनन्द नहीं आ
सकता।)
भागवत में 18 हजार श्लोक, 335 अध्याय तथा 12 स्कन्ध हैं। इसके विभिन्न स्कंधों में
विष्णु के लीलावतारों का वर्णन बड़ी सुकुमार भाषा में किया गया है। परंतु भगवान्
कृष्ण की ललित लीलाओं का विशद विवरण प्रस्तुत करनेवाला दशम स्कंध भागवत का हृदय है।
अन्य पुराणों में, जैसे विष्णुपुराण (पंचम अंश), ब्रह्मवैवर्त (कृष्णजन्म खंड) आदि में
भी कृष्ण का चरित् निबद्ध है, परंतु दशम स्कंध में लीलापुरुषोत्तम का चरित्
जितनी मधुर भाषा, कोमल पदविन्यास तथा भक्तिरस से आप्लुत होकर वर्णित है वह अद्वितीय है।
रासपंचाध्यायी (10.29-33) अध्यात्म तथा साहित्य उभय दृष्टियों से काव्यजगत् में
एक अनूठी वस्तु है। वेणुगीत (10.21), गोपीगीत, (10.30), युगलगीत (10.35), भ्रमरगीत
(10.47) ने भागवत को काव्य के उदात्त स्तर पर पहुँचा दिया है।