हम आशा करते हैं कि आप सब माता बग्लामुखी की कृपा से प्रसन्न एवं आनन्दित होंगे। जैसा कि आपको ज्ञात हो कि हम आपके समक्ष दश महाविद्याओं के सम्बन्ध में प्रतिदिन एक नवीन कथा का विमोचन कर रहे हैं। उसी प्रकार एक बार पुनः श्रीवृद्धि ज्योतिष आपके समक्ष माँ भगवती तारा की कथा को लेकर उपस्थित हैं। आइये जानते हैं कि दूसरी महाविद्या भगवती तारा के बारे में क्या वर्णित है। तांत्रिक की प्रमुख देवी – भगवती तारा ही नीलरूपा होने के कारण तारा कहा गया है। यह सर्वदा मोक्ष दायिनी तथा भवसागर से तारने वाली हैं। इस लिए इन्हें ”तारा“ कहा जाता है। अनयासी वाक् शक्ति प्रदान करने में समर्थ हैं माता तारा इसलिए इन्हें नील सरस्वती भी कहा जाता है। भयंकर विपत्तियों से अपने भक्तों की सदैव रक्षा करती हैं, इसलिए ये उग्रतारा भी हैं। विघ्नील आदि तदाग्रंथों में भगवती तारा के स्वरूप् की विशेष रूप् से चर्चा है।
“हयग्रेव“ का वध करने के लिए इन्हें नील विग्रह प्राप्त हुआ था। यह शवविक्षेप पर तत्कालिक मुद्रा में आरूण हैं। नीलवर्ण वाली नील कमलों के समान तीन नेत्रों वाली तथा हाथों में कपाल, कमल और खड्ग धारण करने वाली हैं। यह व्याघ्रचर्म से विभूषिता तथा कण्ट में मुण्डमाला धारण करने वाली हैं। शत्रुनाश वाक्शक्ति की प्राप्ति के लिए तारा अथवा उग्रतारा की साधना की जाती है। यह भगवती मोक्ष प्रदायनी हैं। रात्रि देवी की स्वरूपा शक्ति भगवती तारा महाविद्यओं में अद्भुत प्रभाव वाली और सिद्धि की अधिष्ठात्री देवी कही गयी है।