माता काली

प्रिय बन्धुवर जैसा कि आपको ज्ञात है कि श्रीवृद्धि ज्योतिष आपके समक्ष नित्य प्रतिदिन दशमहाविद्याओं की कथा लेकर के आता है। वैसे ही हम आज आपके समक्ष सर्व प्रथम महाविद्या भगवती महाकाली की कथा का विमोचन करते हैं।

भगवती महाकाली दश महाविद्याओं में से सर्वप्रथम विद्या मानी गयी हैं। यह माता जगदम्बा सर्ब मनोरथ को पूर्ण करने वाली हैं। यह जितनी सौम्य हैं, उससे कहीं अधिक उग्र भी हैं। यह माता भगवती समय से पूर्व ही मनोवांच्छित फल की प्राप्ति करवाती हैं। यदि इनके पूजन में कोई त्रुटिपूर्ण कार्य होता है तो यह माता जगदम्बा दरिद्रता को प्राप्त करती हैं।

यह माता काली तीन नेत्र तथा अष्ट भुजा से शुसोभित हैं तथा इनका परमधाम पश्चिम बंगाल कलकत्ता में है।

इन देवी की पूजा त्रिगुण मयी है। राजसी, तामसी तथा तानसीं सात्विक, राजसिक, तामसिक, इस प्रकार यह देवी त्रिगुणरूपमयी पूजा को स्वीकार करती हैं।

!!भगवत्यै कालिकायै नमः!!

इनका अवतार किस कारणवश हुआ

माता जगत जननी महाकाली के सम्बन्ध में शास्त्र तथा पुराणों में नेकाऽनेक कथा प्रचलित हैं, इसी से सम्बन्धित कथा हम आपके समक्ष प्रगट करते हैं। एक समय दारूक नाम के दैत्य ने बृह्मा जी का महातप किया था उसके तप के प्रभाव से सृष्टि व्याकुल हो उठी तथा मही पर समस्त जीव-जन्तु अकुलाने लगे थे। तब बृह्मा ने सृष्टि की व्यवस्था को दारूक के तप के कारण विगड़ते देखा तो उन्होंने दारूक के सामने प्रकट होकर वरदान मांगने के लिए कहा। तब दारूक नाम के दैत्य ने बृह्मा से अनेक वरदान मांगने के लिए कहा। तब दारूक नाम के दैत्य ने बृह्मा से अनेक वरदान प्राप्त कर लिये तथा वह राक्षस वरदान के मद में आकर संत, ब्राह्मण, ऋषि तथा मुनि एवं गाय इत्यादि को प्रताडित करने लगा तब देवताओं ने बृह्मा जी के समीप जाकर करूण क्रंदना की तो बृह्मा ने कहा िकइस दैत्य का वध स्त्री तथा पुरूष दोनों के हाथों से होगा। तब श्री बृह्मा जी के वचन सुन कर श्रीनारायण तथा भगवान आशुतोष ने स्त्री का स्वरूप् रखा तथा उस दैत्य के साथ द्वंदयुद्ध करने लगे परन्तु वह दैत्य अत्यधिक वलशाली होने के कारण दोंनो महाशक्तियों से पराजित न हो सका। उपयुक्त वह उन दोनों को ही परास्त करने लगा यह देख माता जगदम्बा क्रोध से जल उठी तथा अट्टह्नास करके रण में युद्ध करने लगी तथा भगवान नारायण तथा स्वयं महाकाल के सहयोग से उस महाबलशाली असुर दारूक की संहारक बनी।

माता जगदम्बा काली के सम्बन्ध में देवाऽसुर महासंग्राम से भी जुड़ी एक कथा जगत प्रचलित है। इन्हीं माता काली ने देवाऽसुर संग्राम में रक्तबीज नाम के महाअसुर का मर्दन किया था तथा उसका समस्त रक्त पीकर उसे मोक्ष प्राप्त किया था।

माँ काली पूजा का महत्व

पूर्णिमा के दिन माता कालिका की पूजा करने से संतान सुख मिलता है। माता कालिका सभी तरह की मनोकामना पूर्ण करती है। माता काली की पूजा या भक्ति करने वालों को माता सभी तरह से निर्भीक और सुखी बना देती हैं। वे अपने भक्तों को सभी तरह की परेशानियों से बचाती हैं। जिस प्रकार अग्नि के संपर्क में आने के पश्चात् पतंगा भस्म हो जाता है, उसी प्रकार काली देवी के संपर्क में आने के उपरांत साधक के समस्त राग, द्वेष, विघ्न आदि भस्म हो जाते हैं। परंतु उनकी पूजा या साधना को बहुत ही सावधानी और नियमपूर्वक करना होता है अन्यथा प्रकोप भी झेलना पड़ सकता है।

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राजस यज्ञ सात्विक होता है , जिसे समस्त लोग कर सकते हैं , तामस यज्ञ सात्विक नहीं होता है तथा उसमें ड़लने वाली आहुति भी सात्विक नहीं होती हैं , तथा तानस यज्ञ जिसे तांत्रिक क्रिया से किया जाता है , इस यज्ञ में भी सात्विक आहुति नहीं ड़लती ,

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“ गुरु पुष्य नक्षत्र में मां काली की पूजा का अनुष्ठान कारगर रहा,मेरे घर में सुकून आ गया, बरकत के लिए भी कुछ बताइयेगा ”

Braj Bhushan
Delhi